Friday, August 19, 2011

मै कौन हूँ मैं क्या मै क्यों हूँ

मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, मै क्यों हूँ
ज़िन्दगी ने पथ दिखलाये,
या पथ यूँ ही बनते चले गए
क्या लक्ष्य था क्या आशा थी
या ज़िन्दगी केवल एक मिथ्या थी
जो नया है क्या सच में नया है

नया है तो क्या है
वही सवेरा वही शाम है
आशाओं से परिपूर्ण,सपनों की उड़ान
मिथ्याओं में नयी जान
पर जाने क्यों अधुरा है

अधुरा है तो क्यों है,क्या यह वही पूर्णता है
या जीवन की मलिन शुद्धता, बस दुविधाओ में पाले
वास्तविकता से परे, सच झूठ अच्छा बुरा
जीवन तो जीवन है, और जीना ही तो है

कभी कभी मन चंचलता के भाव भरे
और कभी स्थितता से परे
क्या यही सोच हम हुए बड़े, पग्दंदियो के सहारे चले
क्या कर्त्तव्यनिष्ठां, क्या कर्त्तव्यपरायणता
सब यूँ ही धरे के धरे

माँ का प्यार,पिता की स्नेहात्मक फटकार
मित्रो में जीवन की झंकार
शायद पूछे हमसे यही बार बार
जिसे जिंदगी मानने हम चले
क्या कभी थे वे मेरे अपने

हर धुंधली याद, लाये चेहरे पे मुश्कान
किताब-सफलता से परे
जाने किस डगर पे हम चले
क्या था अपना क्या था पराया
हम थे फर्क इनमे भूले पड़े

बस था तो केवल एक सुन्दर
सजाल मिथ्या का संसार
जिसमे डूबा था हर रोम
रोम रोम नशे में दुबे पड़े

नशा भी एक खास,जिसे पाने का एहसास
लिए दिल में ये विश्वास,कुछ करेंगे हम खास
जिसपे करेंगे सब नाज़

जब सपने से जागे तो
पाया खोया खोया है संसार
ना मिथ्या ना साथी
पाया खुद को वही
जहाँ से की थी जीवन सफ़र की शुरुवात

इश मिथ्या के नशे में डूबे संसार को जब हमने छोड़ा
पाया एक सज़ल एहसास जिंदगी में ना रहा कुछ हमारे सिवा

संसार की वास्तविकता से जब जोड़ा नाता
पाया हममे ना रहा विश्वास,
जीवन को अपने इशारो पे चलने का हिसाब

जब जागे हम सपनों की दुनिया से, तब हुआ ये एहसास
मै कौन हूँ मैं क्या मै क्यों हूँ

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