Saturday, August 27, 2011

यह उम्मीद कैसे!!!!!

उम्मीद ना जाने क्यों तुमसे
हर ख्वाब सजे जाने क्यों तुमसे
ना जाने क्यों हर दिन तुमसे
न जाने क्यों हर रात तुमसे

हज़ार रूकावटो, हज़ार बंदिशों के बाद
तुझे मुश्कुराते देखने का एक टक देखने का अरमां कैसे
भूल गया मैं खुद को कैसे
तुम मेरी कोई नहीं फिर उम्मीद कैसे

हर हदे तोड़ तुझे निहारने का
दो बातें करने करने का एहसास कैसे
तेरी हर मुश्कान मेरी हो ये अरमां कैसे
तू मुझे देखे ये ख्वाब कैसे

तेरे मेरे रास्तें हर रास्ते अलग
फिर यह उम्मीद कैसे
'तुझसे' इतनी उम्मीद कैसे
फिर मैं भुला अपनी हदे कैसे
फिर मैं भुला अपनी औकात कैसे
यही सच है बस हर ख्वाब पुरे नहीं होते ऐसे

Tuesday, August 23, 2011

पहचान

(मन था आज करू मैं खुद से बातें
दो पल रूबरू हो खुद से
खुद की करू मैं पहचान)

रुक--- रुक---- रुक
खुद की क्या पहचान करू
मैं तोह केवल एक जोकर हूँ
लोग हस्ते मुझपे लोगो को मैं हसता हूँ

मन करता इस जोकर का भी
कोई एक दिन आये
जो तन्हाई है जीवन में, उसे मिटाये
रुक रुक रुक ए मन मेरे, क्यों मिथ्या में तू जीता है
समय पड़े या तू मरे, किसी को फर्क क्या पड़ता है

हर शक्स आता तेरी दुनिया में
करता वादे संग जीने के
दो पल संग संग मुश्कुरता
खुद की असलियत तू भूल जाता
तेरी असलियत तोह दुनिया जाने
तू जाने अपनी रीत रे,क्यों भूल पड़ा तू खुद को
क्या तेरी औकात रे, तू तोह बस एक जोकर
हर मुशकुराती भीड़ में , तू बेचारा जोकर है

तेरा तोह बस यही मूल्य रहा
तुझे देख सब हसे,यही तेरा कर्त्तव्य रहा
यही तेरी औकात रही,यही तेरी बात रही

आज जो तेरे जीवन में आया है
जिसे पा तू इतना मुस्कुराया है
जिसे पा तेरा मन खुबसूरत बन पाया है
जिसे पा तू खुद पे इठलाया है
रुक जरा तो इस पल यहाँ, इशसे पहले तेरा मन
हजारो ख्वाबो के उड़ान भरे,या उसे पा तू कोई जज्बात भरे
तू ठहर जाना एक पल,कर ले खुद की पहचान तू इश वक़्त
तू बस एक जोकर है, तेरी बस ये ही अहमियत है

वोह तो जीने आया है अपने जीवन के चार पल यहाँ
तू एक पल का है साथी उसका फिर तेरी औकात कहाँ
वोह दिन भी आएगा जब तुझे छोड़ वोह खुद की दुनिया में मसरूफ हो जायेगा
तू एक बार फिर तनहा हो जायेगा
तू सोच इन सुनहरे पलो को , तनहा ही मुश्कुरायेगा
फिर तेरी औकात वही, फिर तेरी पहचान वही
तेरी पहचान यही बस तेरी औकात यही
तू तोह बस एक जोकर है, तू बेचारा जोकर है





Friday, August 19, 2011

मै कौन हूँ मैं क्या मै क्यों हूँ

मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, मै क्यों हूँ
ज़िन्दगी ने पथ दिखलाये,
या पथ यूँ ही बनते चले गए
क्या लक्ष्य था क्या आशा थी
या ज़िन्दगी केवल एक मिथ्या थी
जो नया है क्या सच में नया है

नया है तो क्या है
वही सवेरा वही शाम है
आशाओं से परिपूर्ण,सपनों की उड़ान
मिथ्याओं में नयी जान
पर जाने क्यों अधुरा है

अधुरा है तो क्यों है,क्या यह वही पूर्णता है
या जीवन की मलिन शुद्धता, बस दुविधाओ में पाले
वास्तविकता से परे, सच झूठ अच्छा बुरा
जीवन तो जीवन है, और जीना ही तो है

कभी कभी मन चंचलता के भाव भरे
और कभी स्थितता से परे
क्या यही सोच हम हुए बड़े, पग्दंदियो के सहारे चले
क्या कर्त्तव्यनिष्ठां, क्या कर्त्तव्यपरायणता
सब यूँ ही धरे के धरे

माँ का प्यार,पिता की स्नेहात्मक फटकार
मित्रो में जीवन की झंकार
शायद पूछे हमसे यही बार बार
जिसे जिंदगी मानने हम चले
क्या कभी थे वे मेरे अपने

हर धुंधली याद, लाये चेहरे पे मुश्कान
किताब-सफलता से परे
जाने किस डगर पे हम चले
क्या था अपना क्या था पराया
हम थे फर्क इनमे भूले पड़े

बस था तो केवल एक सुन्दर
सजाल मिथ्या का संसार
जिसमे डूबा था हर रोम
रोम रोम नशे में दुबे पड़े

नशा भी एक खास,जिसे पाने का एहसास
लिए दिल में ये विश्वास,कुछ करेंगे हम खास
जिसपे करेंगे सब नाज़

जब सपने से जागे तो
पाया खोया खोया है संसार
ना मिथ्या ना साथी
पाया खुद को वही
जहाँ से की थी जीवन सफ़र की शुरुवात

इश मिथ्या के नशे में डूबे संसार को जब हमने छोड़ा
पाया एक सज़ल एहसास जिंदगी में ना रहा कुछ हमारे सिवा

संसार की वास्तविकता से जब जोड़ा नाता
पाया हममे ना रहा विश्वास,
जीवन को अपने इशारो पे चलने का हिसाब

जब जागे हम सपनों की दुनिया से, तब हुआ ये एहसास
मै कौन हूँ मैं क्या मै क्यों हूँ