उम्मीद ना जाने क्यों तुमसे
हर ख्वाब सजे जाने क्यों तुमसे
ना जाने क्यों हर दिन तुमसे
न जाने क्यों हर रात तुमसे
हज़ार रूकावटो, हज़ार बंदिशों के बाद
तुझे मुश्कुराते देखने का एक टक देखने का अरमां कैसे
भूल गया मैं खुद को कैसे
तुम मेरी कोई नहीं फिर उम्मीद कैसे
हर हदे तोड़ तुझे निहारने का
दो बातें करने करने का एहसास कैसे
तेरी हर मुश्कान मेरी हो ये अरमां कैसे
तू मुझे देखे ये ख्वाब कैसे
तेरे मेरे रास्तें हर रास्ते अलग
फिर यह उम्मीद कैसे
'तुझसे' इतनी उम्मीद कैसे
फिर मैं भुला अपनी हदे कैसे
फिर मैं भुला अपनी औकात कैसे
यही सच है बस हर ख्वाब पुरे नहीं होते ऐसे
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