Tuesday, August 23, 2011

पहचान

(मन था आज करू मैं खुद से बातें
दो पल रूबरू हो खुद से
खुद की करू मैं पहचान)

रुक--- रुक---- रुक
खुद की क्या पहचान करू
मैं तोह केवल एक जोकर हूँ
लोग हस्ते मुझपे लोगो को मैं हसता हूँ

मन करता इस जोकर का भी
कोई एक दिन आये
जो तन्हाई है जीवन में, उसे मिटाये
रुक रुक रुक ए मन मेरे, क्यों मिथ्या में तू जीता है
समय पड़े या तू मरे, किसी को फर्क क्या पड़ता है

हर शक्स आता तेरी दुनिया में
करता वादे संग जीने के
दो पल संग संग मुश्कुरता
खुद की असलियत तू भूल जाता
तेरी असलियत तोह दुनिया जाने
तू जाने अपनी रीत रे,क्यों भूल पड़ा तू खुद को
क्या तेरी औकात रे, तू तोह बस एक जोकर
हर मुशकुराती भीड़ में , तू बेचारा जोकर है

तेरा तोह बस यही मूल्य रहा
तुझे देख सब हसे,यही तेरा कर्त्तव्य रहा
यही तेरी औकात रही,यही तेरी बात रही

आज जो तेरे जीवन में आया है
जिसे पा तू इतना मुस्कुराया है
जिसे पा तेरा मन खुबसूरत बन पाया है
जिसे पा तू खुद पे इठलाया है
रुक जरा तो इस पल यहाँ, इशसे पहले तेरा मन
हजारो ख्वाबो के उड़ान भरे,या उसे पा तू कोई जज्बात भरे
तू ठहर जाना एक पल,कर ले खुद की पहचान तू इश वक़्त
तू बस एक जोकर है, तेरी बस ये ही अहमियत है

वोह तो जीने आया है अपने जीवन के चार पल यहाँ
तू एक पल का है साथी उसका फिर तेरी औकात कहाँ
वोह दिन भी आएगा जब तुझे छोड़ वोह खुद की दुनिया में मसरूफ हो जायेगा
तू एक बार फिर तनहा हो जायेगा
तू सोच इन सुनहरे पलो को , तनहा ही मुश्कुरायेगा
फिर तेरी औकात वही, फिर तेरी पहचान वही
तेरी पहचान यही बस तेरी औकात यही
तू तोह बस एक जोकर है, तू बेचारा जोकर है





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